प्रत्येक वर्ष में हम लोग इस जगह पर एक या दो बार ज़रूर आते थे । यह ऐसी जगह थी कि नदी का पानी एक समय तो फ़्रीज़ हो जाता और पानी भी बर्फ जैसा सख्त हो जाता । मैं और मेरे दोस्त ने विशाल खिड़की के बगल में नाश्ते की मेज लगाई। नदी के उस पार बर्फ ने किनारे को,जो सफेद रंग का था ।वह चुपचाप खड़ा देखता रहा।अचानक चिल्लाया “वहाँ एक हंस है।” मैंने दूरबीन की एक जोड़ी निकाली और देखा कि अभी भी वहाँ ढ़ेर सारे हँस थे। उनके पंख अपने किनारों पर जकड़ गए थे।उनके पैर बर्फ पर जमे गए थे।
फिर अंधेरे आसमान से, हमने हंसों की एक पंक्ति देखी। मेरा दोस्त अचानक बोला,देख़ो “हंसों ने फँसे हुए हंस को घेर लिया ।” उसे कौतुहलता से देख रहा था कि क्या अभी भी यह सब हंसों को बाहर निकाल सकते है।आश्चर्यजनक रूप से बाक़ी हँस बर्फ पर अपना काम करना शुरू किया।बार बार लंबी गर्दन को उठाकर नीचे करते।यह लंबे समय तक चला। अंत में, हँसो ने बर्फ के आसपास की बर्फ़ हटानी शुरू कर दी।
फँसे हुए हँस का सिर उठा। उसका शरीर खिंच गया।हँस स्वतंत्र हो गया था और बर्फ पर खड़ा हो गया। वह अपने बड़े जाल वाले पैरों को धीरे-धीरे घुमा रहा था और बाक़ी हँस हवा में खड़े उसे देखते रहे। फिर जैसे वह रोया कि “मैं उड़ नहीं सकता,” वैसे ही सारे हंस उसके चारों ओर आ गए। अपनी शक्तिशाली चौंचो से फँसे हुए हँस के पंखों को ऊपर से नीचे तक फैला दिया।उसके पंख जो नीचे धंसे थे।वह मुक्त हो कर पंखों में जमी बर्फ को पिघलाते । धीरे-धीरे परीक्षण करते हुए, हंस ने अपने पंख फैलाए ।और आसमान में उड़ने लगे।